tag:blogger.com,1999:blog-68656695485146992252024-02-19T08:09:18.107+05:30उदास आँखों का ख़्वाब बारहा सन्नाटों की आवाज़ <br> ग़ज़ल बन जाती है...!!!क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.comBlogger67125tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-83916384201074653682014-04-10T22:12:00.000+05:302014-04-10T22:12:20.602+05:30कर्ज़दार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<pre style="text-align: left;"><div style="text-align: left;">
मास्सा'ब एकटक उसके मासूम चेहरे को देख रहे हैं... पिछले १२ घंटों से... उसके सिरहाने से उठने का नाम ही नहीं ले रहे वे। आँखें क्यों नहीं खोलता वह... एक बार... बस एक बार उठकर कह दे वह मास्सा'ब को... 'माफ़ किया'... फिर तो अपनी जान भिड़ा देंगे वो... कुछ नहीं होने देंगे उसे... अपने 'मोहना' को। हाँ... वो गुनहगार हैं मोहना के... क्या जवाब देंगे उसकी माँ को... दुनिया की उन्हें परवाह नहीं, लेकिन मोहना की माँ की विश्वास भरी आँखें... चैन से जीने भी ना देंगी... मरने भी नहीं।
मोहना... मोहना की माँ... मोहना के चेहरे में मोहना की माँ का चेहरा... मोहना की माँ के चेहरे में मोहना का चेहरा... सब गड्डमड्ड! क्या हो रहा है उन्हें... बुक्क फटता है उनका... भींगी आँखों के आगे चेहरे नाचते हैं... ता थई... ता थई... और उन्हें रोना आता है। <br />
***** ***** *****
<br />
मोहना... और उसकी माँ से पहला परिचय याद आता है मास्सा'ब को। मोहना के बाबा प्राय: ज़िक्र किया करते थे मास्सा'ब से... कि वे मोहना को अपने साथ लेते जाएँ... शहर के स्कूल में, जहां मास्सा'ब पढ़ाते थे। पर वे टाल जाते थे... कहाँ तो अपना ही ठौर नहीं बँधा, पराये बच्चे को कहाँ लेकर जाएँगे...?
यही कोई तीन बरस पहले मास्सा'ब एम. ए. करके गाँव आये थे... कुछ दिन तक गाँव में ही बच्चों को पढ़ाते रहे... मास्सा'ब हो गए। असली नाम से कोई उन्हें नहीं पुकारता... न कोई बड़ा, न छोटा। पिछले साल खबर लगी, एक दूर के रिश्तेदार ने शहर में स्कूल खोला है... छात्रावास सहित... छोटा सा स्कूल। जुगत भिड़ाई गई... और मास्सा'ब फिर से शहर चले गए। कभी-कभी छुट्टियों में गाँव आते हैं।
पिछली दफे जब मास्सा'ब गाँव आए थे, अपने स्कूल हॉस्टल के 'सुपरिंटेंडेंट' का पद पाकर आए थे। किसी को भनक नहीं थी गाँव में, लेकिन उस दिन सबेरे-सबेरे मोहना को लिए मोहना की माँ खुद मास्सा'ब के घर पहुँच गई थी... मोहना को सामने कर अपने आँचल फैला दिए थे... "मेरी झोली भर दो मास्सा'ब... मेरे मोहना को विद्या का दान दे दो... जनम जनम तुम्हारी ऋणी रहूँगी" !
मास्सा'ब ने भर नज़र देखा मोहना की माँ को... पता नहीं क्या दिखा उन्हें उन आँखों में... यह याचना नहीं थी... प्रार्थना नहीं थी... पता नहीं क्या... वे 'ना' नहीं कर पाए...!
***** ***** ***** </div>
<div style="text-align: left;">
मास्सा'ब मोहना के सिर की पट्टी पर हाथ फेरते हैं... टप्प... टप्प ... आँसू गिरते हैं उनकी आँखों से... एक धुँधलका-सा छा जाता है आँखों के सामने... और उस धुँधलके में से दिख पड़ता है उन्हें अपने गाँव का स्टेशन।
मोहना की माँ और उसके बाबा आए हैं मोहना को छोड़ने। मोहना को मास्सा'ब के हवाले कर के उसके बाबा कहते हैं "बिन बाप का बच्चा है... अब से आप ही इसके बाप हैं... माँ हैं... गुरु हैं"। मोहना की माँ कुछ नहीं कहती... पर उसकी आँखें बहुत कुछ कहती हैं... आँसू भरी आँखें... पता नहीं क्या है उन आखों में... मास्सा' ब ज्यादा देर नहीं देख पाते उन आखों की ओर... नज़रें झुका लेते हैं। वो आँखें उन्हें अपनी ओर खींचती हैं... फिर भी...।
नज़रें झुकाकर ही कहते हैं मास्सा'ब मोहना की माँ से - "भरोसा रखियेगा... आपका बच्चा मेरे पास उसी तरह रहेगा, जैसे अपनी माँ की गोद में। मैं इसे खूब पढ़ाऊँगा... इतना कि एक दिन यह आपका ही नहीं, मेरा भी नाम रोशन करे..." !
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सात बरस का मोहना... शोख आँखों वाला मोहना... मिठबोलिया मोहना... हरदम ही शरारत को तैयार... कान उमेथो तो झट से एक झूठ थमा देता... कोई ऐसा बहाना कि मास्सा'ब कितने भी गुस्से में क्यों ना हों... मुस्कुरा पड़ते। सबको मोह लेता था... मोहना। मास्सा'ब बड़े लगन से पढ़ाते थे उसे - हॉस्टल में अपने ही पास सुलाते। बस उसके झूठे बहानो से खीझ होती थी उन्हें... कभी-कभी चपत भी लगा देते थे... पर प्यार भी उतना ही करते थे उसे।
वही... उनका प्यारा मोहना... आज उनकी ही करनी से अस्पताल के बेड पर पड़ा है... बार-बार अपने हाथों की ओर देखते हैं मास्सा'ब... ये उनके हाथों क्या हो गया?
***** ***** *****
मोहना के होंठ हिले थे... मास्सा'ब को लगा जैसे मोहना उन्हें ही पुकार रहा हो... 'मास्सा'ब' - हाँ, यही कहकर तो चिल्लाया था मोहना उस वक़्त, जब ये सब दुर्घट घटा था... लेकिन मास्सा'ब कुछ नहीं कर पाए... सारा का सारा दृश्य उनके स्मृति-पटल पर किसी फिल्म के फ्लैशबैक-सा आता जाता है...
शाम का समय था - सारे बच्चे छोटे-से मैदान में खेल रहे थे। यह मैदान स्कूल और हॉस्टल के बीच में था और मैदान के एक सिरे पर खड़ी थी एक पुरानी-सी दीवार... बेवजह-बेमक़सद। कितनी बार मालकिन बुढ़िया से कहा भी गया था तुड़वाने को, लेकिन नहीं मानी थी वो। दरअसल स्कूल किराए की जमीन पर बनाया गया था... पास ही बुढ़िया रहती थी, जिसने प्रिंसिपल को ये जमीन किराए पर दे रखा था।
मैदान के इस परले सिरे खड़ी दीवार से एक तार निकला हुआ था, जिसे हॉस्टल के छज्जे से बाँधकर अलगनी का काम लिया जाता था। पिछले दिन यह तार टूट गयी थी। मास्सा'ब स्कूल से फुर्सत पाने के बाद इसे जोड़ने में लगे थे। दीवार के साये में कुछेक बच्चे खेल रहे थे... पिछले दिन की बारिश में भींगी कच्ची दीवार... मास्सा'ब ने जरा-सा जोर लगा तार खींचा था कि दीवार भरभराकर गिर पड़ी... और मोहना के साथ-साथ दो-तीन और बच्चों की चीखें गूँज गईं... 'मास्सा'ब' ... ! मास्सा'ब दौड़ पड़े थे, लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी... एक क्षण में क्या कुछ हो गया था... !
***** ***** *****
कैसे-कैसे लोग हैं इस दुनिया में...? जाने-पहचाने जब काम नहीं देते, अंजाने काम दे जाते हैं। बच्चों की चीखें और धमाके जैसी आवाज़ सुनकर राह चलते कई लोग दौड़े चले आए... सबने मिलकर एक-एक ईंट हटाई... तीन बच्चे दब गए थे दीवार के नीचे। सबसे भीतर मोहना था... बुरी तरह घायल। सिर से खून बह रहा था... हाथों-पैरों पर खरोंचें थीं... शायद हड्डियां भी चटकी थीं। मोहना ने एक नज़र मास्सा'ब को देखा, होंठों में ही बुदबुदाया...'मास्सा'ब'... और उसकी आँखें मुंदने लगीं... वह बेहोश हो चुका था। शेष दोनों बच्चों को हलकी चोटें आई थी... बुरी तरह दब गया था तो मोहना...।
छोटे शहर में एम्बुलेंस की सुविधा होती कहाँ है... मास्सा'ब मालकिन बुढ़िया के यहाँ दौड़े थे... कार बाहर लगी थी, मगर बुढ़िया ने दी नहीं... साफ मना कर दिया, खून के दाग लग जाते शायद... मास्सा'ब लौटे, और तब तक भीड़ में से कुछेक मोटर-बाइक वाले युवक मदद को आ गए थे। तीनों बच्चों को तीन बाइक पर एक-एक आदमी सम्हाल कर बैठ गए, मोहना को मास्सा'ब ने अपनी गोद में सम्हाला...।
***** ***** *****
१२ घंटे बीतने को हैं... मोहना को अब तक होश नहीं आया... मास्सा'ब उसके सिरहाने बैठे हैं। अपना खून भी दिया है मास्सा'ब ने मोहना को... डॉक्टर साब कहते हैं, "यदि चोट अंदरूनी हुई तो बड़ी मुश्किल होगी... होश आ जाने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है"। बाकी दो घायल बच्चे ठीक हैं, उनकी चिकित्सा कर दी गयी है।
मामला पुलिस तक पहुँच गया है... प्रिंसिपल सिर पकड़ कर बैठे हैं... अब क्या होगा? यदि बच्चे को कुछ हो गया तो? पुलिस, प्रशासन, जनता... सब तिगनी का नाच नाचकर रहेगी... स्कूल बंद करवा देगी, फिर क्या होगा? मास्सा'ब सोचते हैं - यदि होश में आने के बाद मोहना ने पुलिस के सामने उनका नाम लिया तो... ? हो सकता है कि लापरवाही के लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया जाए, स्कूल से तो निकाल ही दिया जाएगा, कहीं मुकदमा भी ना हो जाए उन पर.… कितनी बदनामी होगी... !
खैर... बदनामी भी कुबूल है उन्हें... लेकिन यदि मोहना को कुछ हो गया तो... ? क्या जवाब देंगे वे मोहना की माँ को... ? किस तरह सामना करेंगे वे उन आँखों का... ? क्या उन आँखों में वे फिर कभी वह सब देख पाएँगे, जो उन्होंने आते वक़्त गाँव में देखा था ... ?
***** ***** *****
पता नहीं कब आँख लग गई थी उनकी, दोपहर हो चला था... अचानक अपने हाथों में थमा मोहना का हाथ हरकत करता-सा लगा उन्हें... आँखें खुल गयीं... देखा, मोहना एकटक उन्हें ही देख रहा है... वे चिल्ला पड़े... "डॉक्टर साब"...
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पता नहीं कैसे, ऐन उसी वक़्त पुलिस भी बयान लेने आ गयी थी... शायद मास्सा'ब का, लेकिन मोहना को होश आया देख पुलिस मोहना से भी पूछताछ करने लगी। मास्सा'ब को मोहना से बात करने का भी वक़्त नहीं मिला था - "मेरी वजह से दीवार गिरी, मैं दीवार पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था"... मोहना ने पुलिस को बताया।<br />
मोहना के इस झूठ पर खीझे नहीं थे मास्सा'ब... मास्सा'ब का जी चाहा - कलेजे से लगा लें वे मोहना को... कभी अलग न होने दें... धीरे-से हाथ फेरा मोहना के माथे पर उन्होंने… और मास्सा'ब को लगा - गुनहगार तो थे ही वे मोहना के... अब कर्ज़दार भी हो गए...!!
</div>
</pre>
</div>
<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-48649928856990678652012-11-10T17:13:00.001+05:302014-04-09T17:10:01.088+05:30दिन वो बहुत याद आते हैं...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<pre></pre>
<br />
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">चाँद कटोरा </span><br />
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
मन खटोला </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
कटोरे से माँ खिलाती थी </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
दिन वो बहुत याद आते हैं </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
<br /></div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
मीठी झिरकी </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
पाँव फिरकी </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
झिड़क के माँ पछताती थी </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
दिन वो बहुत याद आते हैं </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
<br /></div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
दोस्त क़िताब </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
दिल में ख्व़ाब </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
क़िताब नया कुछ सिखाती थी </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
दिन वो बहुत याद आते हैं </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
<br /></div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
बासी रोटियाँ </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
बुझी अंगीठियाँ </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
कभी यूँ भी गुज़र जाती थी </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
दिन वो बहुत याद आते हैं </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
<br /></div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
सपने परिंदे </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
आँख उनींदे </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
परिंदों सी कोई ख़्वाब में आती थी </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
दिन वो बहुत याद आते हैं </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
<br /></div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
और अब... सच हैं कड़वे </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
टूटे सपने / दूर अपने </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
भरा पेट / भरी आँखें </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
<br /></div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
नहीं पता था - </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
पेट भरने में आँखें भी भर आती हैं </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
ज़िंदगी परिंदों-सी उडती जाती है </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
चाँद का कटोरा खाली-सा लगता है </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
कोई आता नहीं, उम्र गुज़र जाती है </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
<br /></div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
सच - </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
दिन वो बहुत याद आते हैं !</div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
<br /></div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
</div>
</div>
<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-5353267602668521412012-11-10T14:23:00.001+05:302014-04-09T17:10:01.092+05:30नाकारा दिल...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<pre></pre>
<br />
<br />
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
मैंने दिल खोल के रख दिया </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
उसने दिल तौल के... रख दिया !<br />
<br /></div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
फिर कहा उसने - </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
इस टूटे फूटे सामान के बदले </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
क्या लेने आए हो पगले </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
जाओ जाकर कहीं से </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
चंद ऐसे सामान और ढूँढ लाना </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
फिर लेके प्यार के चंद सिक्के जाना </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
मैं ढूँढने गया भी मगर </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
कहीं नहीं मिला मुझे </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
मेरे दिल जैसा टूटा </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
शै कोई और... </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
मेरे टूटे दिल जैसा - </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
कुछ भी और...</div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
हार कर मैंने दिल को </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
जिस कोने से निकाला था, वहीं... </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
किसी काम का नहीं तू, </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
बोल के रख दिया </div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
<br /></div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
नाकारा दिल,</div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
मैंने टटोल के रख दिया...!</div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">
<br /></div>
<br /></div>
<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-6469456808370531402012-07-21T21:22:00.001+05:302014-04-09T17:10:01.103+05:30मेरा प्यार प्यार है...<pre>
मेरा प्यार प्यार है, कोई हवस नहीं
मुझे तेरी चाहत है, कोई तलब नहीं
वो तो मेरा चेहरा ही नक़ाब बन गया
यूँ निहाँ होती मिरी शख्सियत नहीं
काश के तूने दिल को दी होती तवज्जो
दौलते-दो-जहाँ की थी तुझे जरुरत नहीं
साँस है कि मुसलसल है यूँ ही आज भी
गो रास कोई आती मुझे रवायत नहीं
सोचता हूँ के आज वो आएँ तो कह दूँ
नहीं मेरे ख़्वाबों, आज तबियत नहीं
तलब = लालसा, desire; नक़ाब = परदा, mask; निहाँ = आवृत, covered;
शख्सियत = व्यक्तित्व, personality; तवज्जो = प्राथमिकता, priority;
मुसलसल = निरंतर, continued; गो = यद्यपि, although; रवायत = रिवाज, tradition
</pre><div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-68629110795124207752012-06-02T15:47:00.000+05:302014-04-09T17:10:01.106+05:30रोशनी क़तरा-क़तरा...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<pre>
रोशनी क़तरा-क़तरा, बिखरा कू-ब-कू
मद्धम होके चाँद भी, तुझसा लगे हू-ब-हू
साँस बहकी-बहकी, नज़र लहकी-लहकी
होश भी हो खफा, तू जो आए रू-ब-रू
खुशबू भीनी-भीनी, हँसी झीनी-झीनी
हर सिम्त तू ही दिखे, महके तू-ही-तू
ज़िस्म धनक-धनक, रूह फ़लक-फ़लक
रंग तेरा, नूर तेरा, बाकी मैं हूँ-ना-हूँ
कू-ब-कू = हर गली, every side; रू-ब-रू = आमने-सामने, face to face;
सिम्त = तरफ, side; धनक = इन्द्रधनुष, rainbow; फ़लक = आकाश, sky
</pre>
<br /></div><div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-45074192269245544082012-05-05T12:35:00.000+05:302014-04-09T17:10:01.071+05:30जब दिन बुझ जाए...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<pre>
जब दिन बुझ जाए तो चाँद जला लेना
छत पर बैठना, चाँदनी में नहा लेना
उसकी यादों को रखना महफूज़ कुछ यूँ
क़िताबों के वरक़ों में तस्वीर छुपा लेना
पिछले पहर रात को जब नींद खुले
दीये की लौ उठकर कुछ और बढ़ा लेना
कहते हैं ख़ुदा बाशिंदा है दिल का
हो सके तो किसी दिल का आसरा लेना
यूँ तो दुआओं का क्या है मगर
अबके घर जाओ तो सबकी दुआ लेना
कुछ यूँ ही बसर होती है रात अपनी
तकिये पे सर कभी सर पे तकिया लेना
( महफूज़ = सुरक्षित, safe; वरक़ों = पन्नों, pages;
बाशिंदा = रहने वाला, habitant; आसरा = सहारा, shelter )
</pre>
</div><div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-45834638357829189182012-03-02T22:24:00.003+05:302014-04-09T17:10:01.077+05:30वही सुबह, वही शाम...<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEir1Q3mBxauuK4Rl3TX5jhkEvQPr8wcyMnG1l7KeUvOkng9E-54hZMogCjvZVf_Qoe-OMzRGwavN3PHUvAnNR-l-d8iV4pFeLNgEkpCMeGqK_5IBWu9W0v2EuvTR6UznTsZSqGcWNv9vPpZ/s1600/touch.bmp"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 132px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEir1Q3mBxauuK4Rl3TX5jhkEvQPr8wcyMnG1l7KeUvOkng9E-54hZMogCjvZVf_Qoe-OMzRGwavN3PHUvAnNR-l-d8iV4pFeLNgEkpCMeGqK_5IBWu9W0v2EuvTR6UznTsZSqGcWNv9vPpZ/s200/touch.bmp" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5715348435068164706" /></a><br />वही सुबह, वही शाम, वही अहसासे-कमतरी <br />मैं तेरे साये से भी तंग आ गया हूँ, ऐ ज़िंदगी<br /><br />टुकड़ों-टुकड़ों में बाँटने चला था मैं खुशियाँ <br />टुकड़ों-टुकड़ों में रूह मेरी आज वापस मिली <br /><br />क्यूँ तेरे जहाँ में कोई अपना मिलता नहीं खुदा <br />क्यूँ तेरे क़ुदरत की हर शै बेहिसो-बेजान लगी <br /><br />मैं उस जानिब मुड़ गया था, थी मेरी ही खता <br />क्या कीजै, उधर थी सराब और इधर तिश्नगी <br /><br />कब चाही थी मैंने अजमत, कब अना से वास्ता <br />मैं भी था फ़कीर, भली थी मुझको मेरी अवारगी<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-25988400235811265612012-02-25T21:58:00.000+05:302014-04-09T17:10:01.062+05:30ख़्वाब, आँसू, रोशनी और...ख़्वाब, आँसू, रोशनी और नमी-सी <br />ज़िंदगी में कहीं एक तुम्हारी कमी-सी <br />जिस मोड़ से मुड़ गए थे तुम राह अपनी <br />निगाहें वहीं कहीं हैं अब तक जमी-सी <br /><br />संगे-दहलीज़ पर मेरी लौटोगे कभी तुम <br />यही वहमो-गुमाँ हमें, यही खुशफहमी-सी <br />कोई अब्र को दे दो पता मेरी आँखों का <br />के बरसने के बाद ज़रा हैं ये सहमी-सी <br /><br /><br />(संगे-दहलीज़ = चौखट, अब्र = बादल)<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-60106980837972432562012-02-11T23:43:00.004+05:302014-04-09T17:10:01.100+05:30ज़िंदगी के नाम...चाँद की अंगीठी <br />सितारों के शरारे <br />बुझती शब है... आ,<br />कुछ उपले <br />(साँसों के) <br />और जला ले... <br /><br />ये फ़कीर की रात है <br />कट ही जाएगी <br />सिमटते-सिकुड़ते-ठिठुरते <br />(जमाधन)<br />फटी कम्बल के सहारे...!!!<br /><br /><br />(अंगीठी = चूल्हा, शरारे = चिंगारियां, शब = रात, उपले = गाय के <br /> गोबर से बना इंधन, जो गरीबों के चूल्हे में जलता है)<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-22139309821736057842012-02-05T22:51:00.001+05:302014-04-09T17:10:01.060+05:30तन्हाईयों का सबब है आदमी...तन्हाईयों का सबब है आदमी <br />यूँ तो फिर तनहा कब है आदमी <br /><br />कभी खलिश, सुकूँ, कभी खला <br />रूहो-ज़िस्म का तलब है आदमी <br /><br />एक दिल, और वो भी पशेमाँ <br />कितना बेवज़ह-बेमतलब है आदमी <br /><br />हर शख्स के हैं दो चेहरे यहाँ <br />खुद ही देव, खुद ही रब है आदमी <br /><br />दो अलग उन्वान हैं आदमी-ओ-इन्सां <br />के पहले इन्सां हो ले, तब है आदमी <br /><br /><br />(खलिश = चुभन, खला = शून्य, तलब = कामना, <br />पशेमाँ = लज्जित, देव = शैतान, उन्वान = शीर्षक)<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-46313283449377668942011-12-11T00:28:00.001+05:302014-04-09T17:10:01.080+05:30रात - २ बिम्ब<span style="font-weight:bold;">१ </span><br />सारी रात,<br />चाँद जलाया मैंने... <br /><br />सितारे,<br />शरारों की मानिंद - <br />बादलों की राख में सुलगते रहे!<br /><br />सुबह हुई तो रात,<br />मेरी आँखों की दो हाँडी में <br />चंद शबनमी क़तरे छोड़ गई... <br /><br />सारी रात,<br />अपना दर्द पकाया मैंने...!<br /><br /><span style="font-weight:bold;">२</span><br />रात - <br />एक अंधी बुढ़िया भिखारन <br />चाँद का कटोरा लिए बैठी थी... <br /><br />जाने किस कमबख्त ने <br />गरीब दुखियारन के कटोरे में <br />ठेस लगा दी - <br />सारे सिक्के सितारों के <br />बिखर गए जहाँ-तहाँ<br /><br />आज तलक,<br />वो अभागन - <br />अपना खोया सरमाया ढूँढ रही है...!<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-31812754909736424882011-10-30T21:29:00.000+05:302014-04-09T17:10:01.065+05:30जेरे-लब ये हँसी नन्ही-सी...जेरे-लब ये हँसी नन्ही-सी <br />कहकशाँ में धुली चाँदनी-सी <br /><br />सुरमई रात, दिल का आँगन <br />और तुम, कोई परी-सी <br /><br />तुम, मैं और ये जज़्बात <br />चाँद, रात और मयकशी-सी <br /><br />बिखरी-बिखरी निखरी-निखरी <br />हर तरफ इक रोशनी-सी <br /><br />सौ अंजुम यकहा जल उठे <br />यूँ रुखसार पे लौ लहकी-सी <br /><br />लम्हों के ज़िस्म पर तेरा लम्स <br />लिख रही दास्ताँ अनकही-सी<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-70069123433880997162011-10-23T19:43:00.001+05:302014-04-09T17:10:01.109+05:30वक़्त-बेवक़्त अदबो-आदाब की बातें...वक़्त-बेवक़्त अदबो-आदाब की बातें <br />उनके लफ्ज़, गोया किताब की बातें <br /><br />पेश्तर इससे कि कुछ हम भी कहते <br />ख़ल्क कह उठी- "सब ख्वाब की बातें" <br /><br />जुल्मते-दौरां के मारे क्यों उठ बैठे <br />जो हमने ज़रा की माहताब की बातें <br /><br />ज़ख्मे-खार को सीने में छुपा के कहीं <br />की चमन से हमने बस ग़ुलाब की बातें <br /><br />बरहनाई का शौक जिनको था कभी <br />उनसे भी सुनी हमने हिजाब की बातें <br /><br />कुछ देर तलक और बैठ साक़ी यहाँ <br />के बाकी बहुत हैं मेरे अज़ाब की बातें<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-57799681986365660662011-10-10T00:02:00.004+05:302014-04-09T17:10:01.097+05:30एक ख्व़ाब और वो भी...एक ख्व़ाब और वो भी <br />मिली पराई-सी <br />हर जानिब मिली हमें, <br />इक तन्हाई-सी <br /><br />करके ज़ुदा ख़ुद से तेरे <br />ख़याल को हम <br />जिस राह निकले, मिली <br />तेरी परछाईं-सी <br /><br />दर्द एक दुल्हन हो जैसे, <br />जब आई इस घर <br />कुछ ताने दुनिया ने दे दिए, <br />मुँहदिखाई-सी <br /><br />चलो ये भरम ही सही हमारा, <br />मगर यूँ हुआ <br />ज़िंदगी जब भी मिली हमसे, <br />मिली शरमाई-सी <br /><br />ये किस गली आ गए हैं हम<br />के लोगों यहाँ <br />फ़कीरे-इश्क़ को घर-घर <br />मिली रुसवाई-सी<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-80572473486299361572011-10-02T00:09:00.000+05:302014-04-09T17:10:01.114+05:30वक़्त - एक धुनियाकोई है - <br />सरफिरा कोई,<br />अपने ही घर की दीवारों से <br />कान लगाए कहीं कुछ सुनता है <br /><br />नहीं, <br />दीवाना है कोई - <br />वक़्त की शाख से झरे चंद फूल <br />शाम ढले, सन्नाटे में छुपकर चुनता है <br /><br />कोई, <br />कैसे समझाए <br />ये जो दिल है, ये हर शब <br />एक नया ख्व़ाब क्यों बुनता है <br /><br />वक़्त - <br />एक धुनिया <br />लम्हों की कपास एक कोने में <br />बैठा-बैठा, रोज यूँ ही धुनता है <br /><br />तन्हा, <br />कुछ ख़फा-सा <br />दिल आज फिर गुमसुम <br />मन ही मन, जाने क्या गुनता है<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-56445240240853771382011-09-26T00:25:00.000+05:302014-04-09T17:10:01.094+05:30दर्द से भींगती रहीं आँखें...दर्द से भींगती रहीं आँखें, परवाह न किया <br />हाथ रखा सीने पर, फिर भी आह न किया <br /><br />यूँ तो मुझसे भी हँसकर मिली थी ख़ुशी <br />दो पल से मगर ज्यादा निबाह न किया <br /><br />सूखी धरती, बंजर सपने, बयाबान दिल <br />मेरी तरह किसी ने जिंदगी तबाह न किया <br /><br />मुन्तजिर रहकर एक उम्र काट दी मैंने <br />किसी ने मगर, इस तरफ निगाह न किया<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-46715594143582207402011-09-21T00:19:00.003+05:302014-04-09T17:10:01.083+05:30हासिलबरसों तलक मैं <br />सहेजता रहा <br />आँसू के हर एक क़तरे को <br />अपनी पलकों के <br />सीपियों में<br /><br />जमा करता रहा उस पर <br />दर्द की परत दर परत <br />इस उम्मीद में कि इक रोज़ <br />ये मेरे सारे आँसू <br />बन जायेंगे मोती <br /><br />मगर आज, <br />जब अचानक मैंने <br />अपने दिल के खजाने को टटोला <br />ग़म के चंद हीरे <br />मेरे हाथ लग गए...<br /><br />वो आँसू मेरा सरमाया था, <br />ये ग़म मेरा हासिल है !!!<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-35666196348090439692011-09-16T20:40:00.006+05:302014-04-09T17:10:01.068+05:30दो मुख़्तसर नज़्म...<PRE> <strong><br /> <em>"ना..." आत्मघात </em> </strong><br /><BR> <BR><br />सरे-शाम आत्मघात के <br />लिपटी पड़ी थी इरादे से <br />मुझसे फिर आँख की <br />मेरी तन्हाई... छत पर <br /> चढ़े आँसू/ <br />इस तन्हाई से चार पल <br />सख्त नफरत है मुझे ठहरे, <br />पर, तुम्हें ढूँढा - <br /> और फिर <br />जब भी बाँहें खोले टप्प-से <br />आती है- गिर पड़े आँसू...!<br /><br />मैं "ना" <br />नहीं कर पाता...! <br /></PRE><div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-45617697062428895712011-09-11T20:49:00.005+05:302014-04-09T17:10:01.074+05:30चाँद नहीं उगेगा कभी<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7PuRQWjD-TEU4IXY13SVPsUXlt809-6ci83z7jd7jd4NYuHP11WKBmu05eDg8HV7DQST3uv0gFnjhHDyFsdym3Cy0DoSdk3Z4Vt26V9M6Pt6CJ-55dU33XCdaIJMQp60gTwcC8y7BeYrP/s1600/sad-girl+in+moon.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 221px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7PuRQWjD-TEU4IXY13SVPsUXlt809-6ci83z7jd7jd4NYuHP11WKBmu05eDg8HV7DQST3uv0gFnjhHDyFsdym3Cy0DoSdk3Z4Vt26V9M6Pt6CJ-55dU33XCdaIJMQp60gTwcC8y7BeYrP/s320/sad-girl+in+moon.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5651123038759106674" /></a><br />रात जनाज़ा निकला था चाँद का <br />सितारे आए थे मय्यत में रोने, <br />आसमाँ ने अपने हाथों <br />एक सफ़ेद-शफ्फाफ-सा अब्र <br />ढक दिया था लाश के बदन पर... <br />बतौर कफ़न<br /><br />और मैं, खामोश ये दर्द पी रहा था <br />जब तुमने मेरे हाथों में थमा दी थी कुदाल <br />मैंने अपने दिल की ज़मीन पर <br />आहिस्ते-से एक छोटा सा कब्र खोदा <br />और उसकी लाश कर दी मैंने...<br />चुपके से दफ़न <br /><br />अब से मेरी हसरतों के आसमान पर <br />चाँद नहीं उगेगा कभी...!<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-72621782286993290352011-09-03T22:02:00.005+05:302014-04-09T17:10:01.111+05:30जिस रोज़ तेरे ज़िस्म के...जिस रोज़ तेरे ज़िस्म के फूल महक जायेंगे <br />तुम्हारी कसम, हम थोड़ा सा बहक जायेंगे <br /><br />शोलों को ग़र देती रही यूँ ही तुम हवा <br />बेशक़ इक रोज़ हम भी दहक जायेंगे <br /><br />अब तो अक्सर ये हाल रहेगा तुम्हारा <br />सोचोगी मुझे और आँचल ढलक जायेंगे <br /><br />छोडो भी शरमाना, पलकों को यूँ झुकाना <br />ये जो मय है आँखों में, छलक जायेंगे <br /><br />अब जो छत पे आना, जरा चुपके से आना <br />राज़ खुल जाएगा, ग़र पाज़ेब खनक जायेंगे <br /><br />कभी ये ग़ज़ल मेरी तुमसे मिले कहीं तो - <br />मिल बैठना, बातें करना, रुखसार दमक जायेंगे<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-82731039384159737782011-08-28T22:44:00.003+05:302014-04-09T17:10:01.117+05:30उदास आँखों का ख्वाब...<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiSf4JHUnOkLVoFliLLpIbnSoh_kS01YOb_Cfu2ZibaZqaJnTME3g7oWbNPW21-Q_jnRRQWKrK7iW-FiA7kq3bQcUMNMvezEdTHCY3ubqCAmxUkmXj7OqcKxXInKXQ6Q1ihAN4wZyaDTgiO/s1600/4130wide.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 128px; height: 80px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiSf4JHUnOkLVoFliLLpIbnSoh_kS01YOb_Cfu2ZibaZqaJnTME3g7oWbNPW21-Q_jnRRQWKrK7iW-FiA7kq3bQcUMNMvezEdTHCY3ubqCAmxUkmXj7OqcKxXInKXQ6Q1ihAN4wZyaDTgiO/s320/4130wide.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5651125192439401714" /></a><br /><br />बस वही उदास आँखें, और उदास आँखों का ख्वाब <br />यही दो जहाँ मेरे, यही दो जहाँ का असबाब <br /><br />एक-एक सतर, एक-एक सफहा, एक-एक बाब <br />'जिंदगी' उन्वान है जिसका, पढ़ता रहा हूँ वही किताब <br /><br />यहीं कहीं दिलों की पनाह में एक आशियाँ हो मेरा <br />फिर क्या करना है दोज़खो-बहिश्त, अज़ाबो-सवाब <br /><br />मैं अपने तौर पर जीने निकला हूँ, जी लूँगा <br />दुनिया, तू अपने ही पास रख अपने आदाब <br /><br />मैंने दिल में मुहब्बत के चराग़ जला रखे हैं <br />वो चराग़ जिससे रश्क खाते हैं आफ्ताबो-माहताब <br /><br />इक नूर से रोशन हैं लम्हा-लम्हा वादियाँ मेरे दिल की <br />देखें अब तारीकियाँ होती हैं किस तरह कामयाब <br /><br />वक़्त की नज़र बचाकर चुरा रखा था मैंने जिसे <br />अक्सर तन्हाइयों में भीने-भीने महकता है वो गुलाब <br /><br />बारहा सन्नाटों की आवाज़ ग़ज़ल बन जाती है <br />ये ग़ज़ल किसलिए? मुझसे पूछते हैं मेरे अहबाब<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-17595771291474374012010-03-22T18:16:00.000+05:302014-04-09T17:08:38.249+05:30ढूँढता हूँ, इक मयखाना...ढूँढता हूँ, इक मयखाना यहीं कहीं था <br />छलकता हुआ पैमाना यहीं कहीं था <br /><br />लोग आते थे सजदे को दूर-दूर से <br />सुना है - इक बुतखाना यहीं कहीं था <br /><br />जिंदगी से ऊबकर आता था मैं जहाँ <br />वो मेरा ठिकाना यहीं कहीं था <br /><br />कोई पूछे तो कहते थे लोग <br />हाँ, एक दीवाना यहीं कहीं था <br /><br />अभी-अभी रोया था मैं, और <br />उसका शाना यहीं कहीं था <br /><br />मेरे हमदम, मेरे गमगुसार का <br />शायद आशियाना यहीं कहीं था<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-9522538143247626092009-07-03T16:06:00.000+05:302014-04-09T17:08:38.413+05:30मुहब्बत के ये पल...मुहब्बत के ये पल याद रखना <br />हम हों ना हों कल, याद रखना <br /><br />तन्हाई में जब कभी आयेगा ख़याल <br />भीगेंगे आँखों के कँवल, याद रखना <br /><br />मेरी दुनिया, मेरी ज़िंदगी- तुम्हीं से <br />हुई है मुकम्मल, याद रखना <br /><br />पहनोगे जब भी मेरी यादों के लिबास <br />हवा उड़ाएगी आँचल, याद रखना <br /><br />मैं याद रखूँगा ये शोखियाँ तुम्हारी <br />तुम भी मेरे आँसू चंचल, याद रखना<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-50908227963445113492009-06-19T22:17:00.000+05:302014-04-09T17:08:38.333+05:30टूट कर बिखरा, तारा था कोई...टूट कर बिखरा, तारा था कोई <br />दिल भी मेरा बंजारा था कोई <br /><br />सहरा-सहरा, दरिया-दरिया <br />भटका बहुत, आवारा था कोई <br /><br />तमाम उम्र तन्हाईओं के तले रहा <br />कितना बेआसरा-बेसहारा था कोई <br /><br />ज़िक्र भूले से मेरा जो आ गया <br />इतना कहा- 'बेचारा था कोई' <br /><br />उनको हमसे कोई वास्ता ही नहीं <br />कैसे कहें कि हमारा था कोई <br /><br />काश! हम भी उनको प्यारे होते <br />कि हमको भी प्यारा था कोई<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-6865669548514699225.post-80340951012149236442009-05-29T21:18:00.000+05:302014-04-09T17:08:38.380+05:30उदास सी तुम...सुनो सुनयना, भरे-भरे से क्यों हैं तेरे नैना<br />ग़म क्या है तुझको, देखो- मुझे दे दो ना...<br /><br />रूठी खुद से हो कि खफा हो जिंदगी से<br />छोड़ो भी ना, मिलता क्या है यहाँ बँदगी से<br />जो हुआ, हुआ - अब जाने दो ना...<br /><br />आओ ना- तमन्ना की राह पर चलेंगे मिलके<br />खुली फ़िज़ा में साथ उड़ेंगे दो पंछी दिल के<br />आओ ना साथ मेरे, आसमाँ छू लो ना...<br /><br />उठो, हँसो, खिलो, निखरो- फूल की तरह<br />क्यों बिखरती हो यूँ सहरा के धूल की तरह<br />आओ आज मुट्ठी में सारा आकाश भर लो ना...<br /><br />टिमटिमाती लौ सी तुम, इक प्यास सी तुम<br />क्यों बैठी हो इस तरह उदास सी तुम<br />बिखेरो हँसी, चेहरे पर उजास कर लो ना...<div class="blogger-post-footer">kshiteesh4u@yahoo.co.in</div>क्षितीशhttp://www.blogger.com/profile/13490804906388279319noreply@blogger.com5